सोमवार, 24 नवंबर 2014

गुस्ताख़: क्यों चाहिए मिथिला राज्य...?

पिछले कुछ दिनों से कुछ लोगों ने मिथिला राज्य की मांग करनी शुरू कर दी है। इतिहास में मिथिला एक राज्य रहा है, और आजादी तक मिथिला की रियासत भी रही थी। आबादी के हिसाब से मिथिला नेपाल और बिहार में अवस्थित है। अलग मधेशी राज्य की मांग नेपाल में भी है और दबे स्वरों में बिहार की तरफ वाली मिथिला में भी।

सरहद के दोनों ओर मिथिला राज्य की मांग का मूल आधार एक ही हैः दोनों ही तरफ विकास के लिहाज से उपेक्षा का भाव नेतृत्व ने दिखाया है।

सवाल ये है कि मिथिला राज्य है कहां और क्यों बनना चाहिए। मधुबनी जिले की सीध में बेगूसराय तक और आधा सीतामढ़ी और कोसी से पूरब का सारा इलाका...थोड़ा गंगा से दक्षिण तक, यानी बिहार के जिस हिस्से की भाषा मैथिली है या उस भाषा के बीज हैं यानी भाषा में वाक्य के आखिर में छै या छिकै शब्द हो, वहां तक मिथिला है। 

हालांकि, मिथिला की शुरुआत बंगाल की ओर से कटिहार घुसने के साथ ही हो जाती है, जहां आबादी में मुसलमान ज्यादा हैं। कुछ लोगों को मिथिला शब्द से चिढ़ है, सिर्फ इसलिए क्यों कि इससे उन्हें पौराणिक ब्राह्मणवाद की गंध मिलती हैं। लेकिन सच तो यह है कि सिंदूर टीकाधारी मैथिल ब्राह्मणों (गलती से उन्हें ही मिथिला की पहचान और प्रतीक मान लिया जाता है) से परे मिथिला में तकरीबन 24 फीसदी यादव और 15 फीसदी मुसलमानों की आबादी है। अनुसूचित जातियों की तादाद भी काफी है। ऐसे में अलग राज्य से उनके सामाजिक विकास को नई दिशा मिलेगी। 

मिथिलांचल राज्य की मांग में कुछ भी गलत नहीं है। पूरा मिथिला क्षेत्रीय विकास के तराजू पर असमानता का शिकार है। मिथिला के किसी भी कोने मे चले जाए, नीतीश कुमार के 11 फीसदी विकास के दावों की पोल खुल जाएगी। 

बिहार सरकार विकास के तमाम दावे कर रही है लेकिन यह देखना होगा कि सारा विकास कहां केन्द्रित हो रहा है। गंगा के उत्तर और दक्षिण विकास की सच्चाईयों में जमीन आसमान का फर्क है। 
बाढ़ (मोकामा के पास) में एनटीपीसी की योजना से लेकर, नालंदा विश्वविद्यालय तक और आयुध कारखाने से लेकर जलजमाव से मुक्ति की योजनाओं तक में कहीं भी मिथिला के किसी शहर का नाम नहीं है। इन योजनाओं के तहत आने वाले इलाके नीतीश के प्रभाव क्षेत्र वाले इलाके हैं। नीतीश अपनी सारी ताकत मगध और भोजपुर में केन्द्रित कर रहे हैं। 

इन विकास योजनाओं से किसी किस्म की दिक्कत नहीं होनी चाहिए, लेकिन जब इसी के बरअक्स समस्तीपुर के बंद पड़े अशोक पेपर मिल की याद आती है, जिसे फिर से शुरु करने की योजनाओं को पलीता लगा दिया गया या फिर सड़कों के विकास की ही बात कीजिए तो मिथिला का इलाका उपेक्षित नजर आता है। 

इस इलाके के पास एक मात्र योजना है अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की शाखा की। मिथिला में न तो किसी उद्योग की आधारशिला रखी गई है न शैक्षणिक संस्थानों की। सारा कुछ पटना और इसके इर्द-गिर्द समेटा गया है, एम्स, आईआईटी, चंद्रगुप्त प्रबंधन संस्थान और चाणक्य लॉ स्कूल। हाल में धान के भूसे से बिजला का प्रस्ताव गया की ओर मुड़ गया और कोयला आधारित प्रोजेक्ट औरंगाबाद के लिए। मिथिला की हताशा बढ़ती जा रही है।
सिर्फ विकास ही एक मुद्दा नहीं है। मिथिला की अपनी एक अलग संस्कृति है, भाषा खानपान और रहन-सहन है। मिथिला की जीवनशैली में एक खतरनाक बदलाव आ रहा है। भाषा का बांकपन छीजता जा रहा है। 

पान-मखान की मैथिली संस्कृति को बचाने के लिए भी एक अलग राज्य बनाना बेहद जरुरी है।

कई लोग यह मानते हैं कि अब और नए राज्यों की जरूरत नहीं। तमाम किस्म के तर्क गढ़े जा रहे हैं। 1956 में भी भाषाआधारित राज्यों के गठन के समय ऐसे ही तर्क उछाले गए थे। लेकिन तब के 16 बने राज्यों से आज के 28 राज्यों तक क्या कोई ऐसा राज्य है तो नाकाम साबित हुआ हो 

लोग झारखंड का उदाहरण विफल राज्यों में देते हैं, लेकिन जैसी समस्याएं नए राज्यों में हैं वैसी तो पुराने राज्यों में भी हैं।नेतृत्व को याद रखना चाहिए कि मिथिला के लाखों नंगे-भूखे अशिक्षित लोग भी भारत के ही नागरिक हैं। उन्हें कब न्याय मिलेगा

 सरकारों को जनता के नजदीक लाने का काम छोटे राज्य ही कर सकते हैं। कम वोटरों वाले विधायकों का अपनी जनता से निकटता का संबंध होगा। शक्ति और सत्ता का विकेन्द्रीकरण केन्द्र को भी मजबूत बनाएगा।
मिथिला के इलाके के पास खूब उपजाऊ जमीन है, संसाधन भी हैं। मानव संसाधन हैं, जो बाहर जाकर औने-पौने दामों में अपना श्रम बेचते हैं। अलग राज्य इन संसाधनों का सही इस्तेमाल कर पाएगा। कभी जयनगर या दरभंगा जाने वाली ट्रेनों को देखिए, हमेशा भारी भीड़ यही साबित करती है कि उस इलाके से कितना पलायन दिल्ली और एनसीआर में हुआ है। 

मिथिला राज्य का प्रादुर्भाव इलाके के श्रम को पलायन करने से रोकेगा। तरक्की की नई इबारत लिखने के लिए मिथिला का एक अलग राज्य बनाया जाना जरुरी है, देरसबेर यह बात साबित भी होगी

सोमवार, 27 अक्टूबर 2014

मिथिला दरभंगा मे अखन तक नही खुजल आईटी पार्क

मिथिला : कहल गेल छल जे अगर सब किछु ठीक रहल त एक सालक भीतर दरभंगा मे आइटी पार्क मूर्त रूप ल लेत। केंद्र सरकार दरभंगा समेत देशक चुनिंदा 10टा शहर मे आइटी पार्क बनेबाक घोषणा केलक अछि। इसमाद एहि लेल पिछला कई साल स मुहिम चला रखने छल। मिथिला क लोक लेल आर्इटी पार्क क सपना सच हुए जा रहल अछि। भारत सरकार एक साल क भीतर देश भरि मे दसटा आईटी पार्क खोलत जाहि मे दरभंगा सेहो अछि। इ समाद एकटा संवाददाता सम्‍मेलन मे दूरसंचार एवं सूचना प्रदयोगिकी मंत्री कपिल सिब्‍बल देलथि। ओ कहला जे हुनका लग एसटीपीआई (सोफ्टवेयर टेक्‍नोलोजी पार्क्‍स ऑफ र्इंडिया) स्‍कीम अछि आ ओ घोषणा करैत छथि जे एक सालक भीतर चयनित शहर मे एहि पार्क क स्‍थापना भ जाएत। एहि योजनाक अंतर्गत पहिल पार्क पंजाब मे जल्‍द शुरू होएत। सिब्‍बल कहला जे दरभंगा मे केवल आईटी पार्क नहि बल्कि एहि ठाम क कंपनी सब कए मार्केटिंग सपोर्ट सेहो देल जाएत, ताहि लेल अमेरिका मे एकटा सेंटर सेहो खोलल जाएत। ओ कहला जे एहि पार्क क इन्‍फ्रास्‍टक्‍चर क निर्माण क संगहि ओहि कंम्‍पनी सब कए आमंत्रित कैल जाएत जे तुरंत अपन व्‍यापार शुरू करबाक इच्‍छा राखत। ज्ञात हुए जे दरभंगा में आइआइटीक प्रस्‍ताव एयरपोर्ट नहि रहबा स वापस चल गेल, जखन कि आइआइआइटी सेहो गया या नालंदा जेबाक क्रम मे अछि, एहन मे आइटी पार्क एकटा उम्‍मीद जगेलक अछि। ज्ञात हुए जे दरभंगा अपन शिक्षण संस्‍थान लेल प्रसिद्ध अछि। एहि ठाम दूटा विश्‍वविद्ययल, मेडिकल कॉलेज, डेंटल कॉलेज, आयुर्वेद कालेज आ डब्‍ल्‍यूआइटी आ एमबीए कॉलेज सन संस्‍थान पहिने स चलैत अछि। एहन में इ आइटी पार्क नवयुवक लेल घर मे नौकरी क प्रबंध जेका अछि।

रविवार, 20 अप्रैल 2014

मिथिलांचल के लाल









मिथिलांचल  के लाल रमण चलला दुनया में अपन परचम लहरबे के लेल
बेनीपुर, से  : नेपाल के  राजधानी काठमाडू में 29 मई स आयोजित इंटरनेशनल माउंट ऐवरेस्ट मैराथन में भाग लेबाक लेल  घोंघिया गांव निवासी धावक रमणजी यादव शुक्रदिन  काठमाडू रवाना भ गेला । रवाना होए  स पूर्व गांव  हरिपुर में  पहुंचके  शहीद कैप्टन दिलीप कुमार झा के  प्रतिमा पर माल्यार्पण केलेन । इस अवसर पर धावक रमण कहलिन  कि माउंट एवरेस्ट पर होयबाला  मैराथन दौड़ 60 किलोमीटर के अछि । आ एहि  दौड़ में 38 देश के धावक भाग ल रहल छैथ । इंटरनेशनल मैराथन में भाग लेबाक लेल  गत पांच महीनों से तैयारी में जुटल छलु । आब अहा सब के आशीर्वाद चाही रमण के  विदा करबा  के लेल समस्त ग्रामीण संग  शहिद के पिता नथुनी झा  उपस्थित छला ।
अहि से पूर्व ओ कतेक  बेर मिथिलांचल सहित बिहार का नाम किया रौशन क चुकल छैथ
कोलकाता हाफ मैराथन में  रमण जी   भाग लके  बिहार का नाम रौशन केने छल । तीन फरवरी को सुबह सात बजे से शुरू हाफ मैराथन में कुल पंद्रह हजार एथलीटों ने भाग लेने छल । एहिमे रमण जी के  तेरहवां स्थान प्राप्त भेल छल । हुनका  21.097 किमी की दूरी तय करवा  में एक घंटा 23 मिनट 10 सेकेण्ड लागल । कोलकाता हाफ मैराथन में कीनिया, अमेरिका, श्रीलंका, चीन, इंग्लैंड, अफ्रीका  देश के एथलीटों सब  भाग लेने छल । रमण जी मिथला मिरर के  के  कहलिन जे  एहसे  पूर्व  दिल्ली में सेहो मैराथन में सेक्सन सी में पहिल  रैंक प्राप्त केने छलु । इ बात के लके मिथिला में  खुशी के माहोल अछि ।

शनिवार, 12 अप्रैल 2014

जनता निहारि रहल आसमान, राजा भरि रहलाह उड़ान

 
पटना । बिहार में आजादी से पूर्वहि करीब 24टा एयरपोट आ रनवे छल जाहि ठाम स राजा महाराज अपन जहाज से उड़ान भरैत छलाह आ जनता टकटकी लगा आसमान निहारैत छल। एहि चुनावी मौसम पर आजादीक पूर्व क इ नजारा एक बेर फेर ताजा भ जाइत अछि। पटना आ गया एयरपोर्ट जनता लेल खुलल अछि मुदा उत्‍तर बिहार में कोनो एयरपोर्ट जनता लेल नहि अछि, जखनकि पटना एयरपोर्ट पर करीब 65फीसदी यात्री उत्‍तर बिहार क होइत छथि जे गंगा सेतू क जाम कए झेलबा लेल मजबूर छथि। गरमी आ जाम स छटपट करैत एहन जनता आइ जखन आसमान दिस दखैत अछि त ओकरा कईटा उडैत हेलीकॉप्‍अर आ जहाज देखा जाइत अछि जाहि पर राजा गंगा क एहि पार स ओहि पार उड़ैत पहुंच जाइत छथि। हुनका लेल कईटा रनवे अछि आ कईटा हेलीपैड। एहि राजा सबहक उड़ान स पटना एयरपोर्ट क आमदनी सेहो बढल अछि, मुदा राजाक सवारी एयरपोर्ट हैंकर मे नहि ढार भ स्‍टेट हैंगर में ढार भ रहल अछि। जाहि स एयरपोर्ट कए हैंकर शुल्‍क देबा स इ राजा लोकनि बचि जाइत छथि। ल द कए लैंडिंग आ रूट नेविएशन शुल्‍क चुका रहल छथि। मोदी, सोनिया आ राहुल सन महाराजा तक हवाई जहाज स ओहि रनवे पर उतरि रहल छथि जहि पर उतराबाक लेल जनता पता नहि केतबा दिन स सपना सजेने अछि। पटना, गया के अलावा आरा, दरभंगा, पूर्णिया आ भागलपुर एयरपोर्ट भेल जनता लेल उपलब्‍ध नहि अछि मुदा एहि राजा सब लेल इ सदा उपलब्‍ध रहैत अछि। एकटा राजा क बनाउल एहि एयरपोर्ट सब पर दोसर राजा धड़ल्‍ले से उड़ान भरि रहल अछि, मुदा जनता एखनो आसमान निहारबा लेल मजबूर अछि। जनता लेल इ आधारभूत संरचना कखनो सुरक्षा क कारण स त कखनो विभागीय उदासीनता स अनुपयोगी बताउल जाइत रहल अछि। विदेश स उडि कए आयल आ गांधी सेतु पर गर्मी आ जाम में फंसल उत्‍तर बिहार क जनता लेल लोकतंत्र में जनता राजा होइत अछि इ सिद्धांत किताबी अछि, किया त आसमान पर एखनो राजा क सवारी अछि।

शनिवार, 5 अप्रैल 2014

हराही, दिग्घी आ गंगासागर केँ जोड़ला सं बदलत मिथिला

पैघ समय सं ठंडा झोरीमे पड़ल शहरक तीन टा पैघ पोखरि केँ जोड़बाक योजना केँ धरातल पर उतारबाक तैयारी शुरू भऽ गेल अछि। जौँ योजना धरातल पर उतरल तऽ एतुक्का पोखड़िमे समुद्रक नील सन पानि देखबा मे आएत। एहिमे स्वीमिंग क संग नौका विहारक आनंद भेटत। नगर विकास विभाग एकरा संगे कतेको आधुनिक व्यवस्था करबाक योजना बनेलक अछि।
ऐतिहासिक हराही पोखड़िक रकबा 62 बीघा 10 कट्ठा, दिग्घीक 112 बीघा आ गंगासागरक रकबा 78 बीघा 2 कठ्ठा अछि। जौँ योजना पूर्ण भेल तऽ पूरा रकबा 252 बीघा 12 कठ्ठाक भऽ जाएत।
योजना केँ साकार करबा लेल नगर विकास विभाग सीकॉन एजेंसी केँ डीपीआर तैयार करबा लेल अधिकृत केलक अछि। एजेंसी तीनू पोखड़िक सर्वेक्षण केलक अछि। अप्रैलक बाद डीपीआर विभाग केँ सौंप देल जाएत। तीनू पोखड़ि केँ जोड़लाक बाद एक्कर पानि केँ निकालि कऽ गाद केँ साफ कएल जाएत। एकरा बाद एहिमे नील सन पानि देल जाएत। पोखड़ि केँ जोड़बाक ठाम पर फ्लाई ओवरब्रिजक निर्माण होएत। नौका विहारक संगहि, बैसबाक स्थान, मार्निग वाक लेल ट्रैक आदिक योजना अछि।
शहरक महापौरक गौरी पासवानक कहब अछि : 'काज पूरा होएबाक बाद दरभंगा शहर महानगर सन देखाएत। डीपीआर बनेबा लेल एजेंसी स्थलक मुआयना केलक अछि आ बहुतो सुझाव देलक अछि, जेकरा डीपीआर मे जोड़ल जाएत।'

सोमवार, 24 मार्च 2014

मिथिला के किसान

पूर्णिया| आज जहां आम लोग गांवों को छोड़ महानगरों की ओर भाग रहे हैं वहां कुछ लोगों को अपनी जन्मभूमि से ऐसा लगाव होता है कि महानगरीय जीवन छोड़ अपने गांव की माटी से जुड़ने चले आते हैं। यही नहीं, वे कुछ ही समय में अपनी जीतोड़ मेहनत से गांव के नामी किसान के रूप में उभरते हैं। कुछ ऐसा ही कर दिखाया है बिहार के पूर्णिया जिले के चनका गांव निवासी गिरीन्द्र नाथ झा ने। 

दिल्ली विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त गिरीन्द्र झा बताते हैं कि उनके मन में एक वर्ष पूर्व ख्याल आया और उसे अमलीजामा पहनाने के लिए दिल्ली-कानपुर के महानगरीय जीवन और पत्रकार की नौकरी छोड़कर गांव में आकर हल थाम लिया। जिन खेतों में पहले केवल धान और गेहूं उगता था, वहां उन्होंने प्लाइवुड के लिए लकड़ी उपजाने की योजना बनाई। यही नहीं, जमीन की उर्वरा शक्ति बनी रहे इसके लिए पारंपरिक खेती भी जारी रखी। 

उन्होंने बताया कि प्रारंभ में बड़े पैमाने पर वैज्ञानिक तरीके से कदंब के पौधे लगाने से शुरुआत की। दो पौधों के बीच की दूरी 20 फीट रखी। इसके अलावा इन खेतों में गेहूं, धान और मक्के की भी खेती करते रहे। बकौल गिरीन्द्र, "कदंब का पेड़ पर्यावरण के लिए तो महत्वपूर्ण होता ही है साथ ही यह तेजी से बढ़ता है। यह छह से आठ वर्षो में पूरा आकार ले लेता है। इसकी पत्तियां भी जमीन को उपजाऊ बनाती हैं।" 

उल्लेखनीय है कि कदंब के फूलों से एक इत्र बनाया जाता है, जबकि इसके बीजों से निकला तेल खाने और दीपक जलाने के काम आता है। इसके फल के रस से बच्चों का हाजमा ठीक रहता है जबकि इसकी पत्तियों के रस को अल्सर तथा जख्म ठीक करने के काम में लिया जाता है। आयुर्वेद में इसकी लकड़ी से बुखार दूर करने की दवा बनाने का उल्लेख मिलता है। 

गिरीन्द्र बताते हैं कि यह पौधा 10 से 12 वर्षो के अंदर प्लाईवुड कारखाने के लिए तैयार हो जाता है। सामाजिक वानिकी में प्रमुख स्थान रखने वाले इस पेड़ के प्रति एकड़ क्षेत्र में 100 से ज्यादा पौधे लगाए जा सकते हैं। एक पेड़ से 12,000 रुपये तक की आमदनी हो सकती है। 

गिरीन्द्र न केवल खुद बल्कि आसपास के ग्रामीणों को भी पौधरोपण के लिए जागरूक कर रहे हैं और उनके आर्थिक लाभ बता रहे हैं। जहां पिछले कई वर्षो से खेती नहीं हो पा रही थी, वहां चनका गांव तथा आसपास के किसान अब पौधरोपण कर रहे हैं। चनका गांव निवासी किसान राजेश बताते हैं कि सागवान का एक पौधा लगाने में 80 से 100 रुपये का खर्च आता है और यह 13 वर्ष में तैयार हो जाता है। इसके एक तैयार पेड़ से 25 हजार रुपये तक की आमदनी होती है। 

उन्होंने गिरीन्द्र की तारीफ में कहा, "गिरीन्द्र के गांव में वापस आने से न केवल हम किसानों को सरकारी कार्यक्रमों का पता लग रहा है बल्कि नई कृषि पद्धति की भी जानकारी मिल रही है।" गिरीन्द्र बताते हैं कि कदंब की लड़की से पेंसिल, माचिस की तीलियां, खेलों के सामान की पैकेजिंग के अलावा प्लाईवुड तैयार होता है। असम और बंगाल की तर्ज पर बिहार में भी अब प्लाईवुड कारखाने खोले जा रहे हैं।

Mukesh Jha